Monday, July 25, 2011

अमोनियम नाइट्रेट, बम धमाके और बेखबर सरकार...


              13 जुलाई की शाम मुंबई में हुए आतंकी हमले की शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि मुंबई को मातम में बदलने के लिए आतंकवादियों ने एक बार फिर अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया है। हालांकि यह पहली मर्तबा नहीं है, जब उर्वरक के रूप में इस्तेमाल होने वाले इस रसायनिक खाद को आतंक का सामान बनाया गया है।

1997-98 में दिल्ली-मुंबई में हुए एक के बाद एक बम धमाकों में पहली बार अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की बात सामने आई थी। 2 दिसंबर 2002 को मुंबई के घाटकोपर स्टेशन के बाहर बेस्ट बस के अंदर धमाके में इसका इस्तेमाल हुआ, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी। 28 जुलाई 2003 को एक बार फिर मुंबई के घाटकोपर में ही बेस्ट बस को निशाना बनाया गया। इसके बाद 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लाइफ लाइन कहे जाने वाली लोकल ट्रेनों सहित विभिन्न जगहों पर एक के बाद एक 7 जबरदस्त धमाके किए गए जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई। यह संभवतः पहला मौका था जब आतंकवादियों ने अमोनियम नाइट्रेट, आरडीएक्स, टीएनटी विस्फोटक, तेल और बॉल बेयरिंग के घातक मिश्रण का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर तबाही फैलाने के लिए किया था। इसके बाद, 2008 में बैंग्लोर, अहमदाबाद और दिल्ली में भी इसी तरह के मिश्रण का इस्तेमाल कर सीरियल बम ब्लास्ट किया गया। 2010 में वाराणसी को दहलाने वाला धमाका भी अमोनियम नाइट्रेट से ही किया गया था। 17 फरवरी 2010 को पुणे स्थित जर्मन बेकरी में भी आरडीएक्स और अमोनियम नाइट्रेट के मिश्रण से विस्फोट किया गया, जिसमें करीब 17 लोगों की मौत हो गई थी। सितंबर 2010 को दिल्ली के जामा मस्जिद के पास हुए विस्फोट में भी आतंकवादियों ने अमोनियम नाइट्रेट का ही इस्तेमाल किया था।

हालांकि इन तमाम आतंकी घटनाओं के मद्देनजर एक सवाल यहीं से उठता है कि अगर आतंकवादियों द्वारा इतने लंबे समय से अमोनिमयन नाइट्रेट का इस्तेमाल देश में आतंकी घटानाओं को अंजाम देने के लिए किया जा रहा है तो इस केमिकल की खरीद-बिक्री पर अभी तक कोई सख्त कमद क्यों नहीं उठाया गया है? दरअसल, इसका जवाब सरकार के उस विस्फोटक अधिनियम, 1884 में ही छिपा हुआ है जो 127 साल पुराना है। चूंकि अमोनियम नाइट्रेट, जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा बहुत अधिक होती है और जो खेती-बाड़ी में बेहद लाभदायक है, का इस्तेमाल पैदावार को बढ़ाने वाले खाद के रूप किया जाता है इसलिए यह अधिनियम इस केमिकल को घातक विस्फोटकों की श्रेणी में नहीं रखता है।

अतः ऐसे में ही आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने वालों के लिए अमोनियम नाइट्रेट बाजार में उपलब्ध सबसे सस्ता और सहज विस्फोटक हो जाता है। वैसे तो अमोनियम नाइट्रेट अपने मूल रूप में घातक नहीं होता है लेकिन हमारी सरकार और खुफिया तंत्र यह भली-भांति जानती है कि आतंकवादी इस केमिकल में थोड़ा-बहुत तिकड़मबाजी करके इसे किस तरह सबसे घातक हथियार का शक्ल दे देता है। शायद यही वजह है कि 1997 से लेकर जुलाई 2011 तक हजारों लोगों की जानें गंवाने के बाद हमारी सरकार को इस दिशा में नए कानून बनाने की सुझी है और वे इसी मानसून सत्र में इसे लेकर आने की बात भी कर रही है।

जब हम यह कहते हैं कि 9/11 के बाद अमेरिका में कोई भी आतंकी हमला नहीं हुआ है या नाकाम कर दिया गया है तो यहीं पर यह भी बात उठती है कि हमेशा अमेरिका का पिछल्लगू बनी रहने वाली हमारी सरकार सुरक्षा के उन मानकों को क्यों नहीं अपनाती है, जिसे अमेरिका या अन्य विकसित देश सफलतापूर्वक अपने यहां लागू करता है। मालूम हो कि अमेरिका ने सिक्योर हैंडलिंग ऑफ सेफ अमोनियम नाइट्रेट एक्ट 2007 बनाया है, जिसके तहत अमोनियम नाइट्रेट बनानी वाली सारी कंपनियों को विशिष्ट पंजीकरण संख्या मुहैया करवाया जाता है। इन कंपनियों को अपने मालिकान, उत्पादन क्षमता और बिक्री का पूरा ब्यौरा सरकारी एजेंसी को देना अनिवार्य होता है। वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन में सरकार ने अमोनियम नाइट्रेट को एक खास कोटिंग के जरिए विस्फोटक ग्रेड से अलग कर दिया है।

ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने तो तमाम कंपनियों को मैनुफैक्चर्स कौंसिल ऑफ एक्सप्लोसिव ऑफ ऑस्ट्रेलियन गवर्नमेंट के तहत पंजीकरण करवाने का सख्त आदेश दिया है। यह कौंसिल उन कंपनियों के उत्पादन, स्टोरेज और आयात-निर्यात पर कड़ी नजर रखती है जो अमोनियम नाइट्रेट की खरीद-बिक्री करती हैं। इसके अलावा, नवंबर 2009 में पाकिस्तान ने भी तालिबान के दबदबे वाले मलाकंद इलाके में अमोनियम नाइट्रेट की खरीद-बिक्री पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है और अमेरिका द्वारा पूरे देश भर में इस केमिकल पर पाबंदी लगाने का दबाव बनाया जा रहा है। अफगानिस्तान ने तो जनवरी 2010 से ही इसके इस्तेमाल को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।

माना कि हमारे देश में अमोनियम नाइट्रेट की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उस पर पूरी तरह पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है लेकिन हमारी बेखर सरकार को कम से कम सख्त कानूनों के जरिए इसके खरीद-बिक्री पर तो पूरी नजर रखनी ही चाहिए।

Wednesday, July 20, 2011

ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां...

फिल्म सी.आई.डी. (1956) का यह गीत शहरी जिंदगी के भौतिक एवं अनुभवात्मक पक्षों का चित्रण इस प्रकार करता हैः-



ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां
जहा हट के, जरा बच के,
ये है बॉम्बे मेरी जान।
कहीं बिल्डिंग, कहीं ट्रामें,
कहीं मोटर, कहीं मिल,
मिलता है यहां सब कुछ,
इक मिलता नहीं दिल,
इंसान का नहीं कहीं नाम ओ-निशां।
कहीं सत्ता, कहीं पत्ता,
कहीं चोरी, कहीं रेस,
कहीं डाका, कहीं फाका,
कहीं ठोकर, कहीं ठेस,
बेकारों का है क्या काम यहां!
बेघर को आवारा यहां कहते हंस-हंस,
खुद काटें गले सबके, कहें इसको बिजनेस,
इक चीज के हैं कई नाम यहां।
गीता बुरा दुनिया वो है कहता
ऐसा भोला तू ना बन
जो है करता, वो है भरता,
है यहां का ये चलन।
---
प्यारे दिल, यहां जिंदगी मुश्किल है, अगर तुम खुद को बचाना चाहते हो तो तुम्हें देखना पड़ेगा कि तुम किस रास्ते पर जा रहे हो। मेरे प्यारे यह मुंबई है। तुम्हें यहां बहुमंजिली इमारतें मिलेंगी, ट्रामें मिलेंगी, वाहन मिलेंगे, कारखाने मिलेंगे, इंसानियत भरे दिल को छोड़कर तुम्हें यहां सब कुछ मिलेगा। इंसानियत का यहां कोई नामो निशान नहीं हैं। यहां पर जो भी करें उसका कोई मतलब नहीं है। शक्ति या पैसा या चोरी या विश्वासघात ही यहां चलता है। अमीर लोग गृहविहीन लोगों की आवारा व्यक्तियों की तरह हंसी उड़ाते हैं, लेकिन जब वह एक दूसरे के गले काटते हैं, तब उसे व्यापार कहते हैं। यहां इस एक कार्य को कई नाम दिए गए हैं। (स्रोतः एनसीईआरटी)