Tuesday, August 2, 2011

सेहत की बढ़ती दिक्कत, जागरूकता की जरूरत


आज की तेज रफ्तार जिंदगी में लोगों के लिए खुद को स्वस्थ रखना बेहद चुनौतिपूर्ण हो गया है। एक ओर जहां शहरी आबादी की आय में बढ़ोतरी के साथ-साथ जीवन प्रत्याशा में वृद्धि देखने को मिल रही है तो वहीं दूसरी ओर उनकी आधुनिक जीवनशैली ने बहुतेरे बीमारियों को भी न्यौता दे दिया है। आधुनिक जीवनशैली के कारण हम जिन सामान्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं उसमें हाइपरटेंशन, मोटापा, कमर व शरीर दर्द, डायबिटीज, कैंसर आदि बेहद आम है।

कमर दर्द
वर्तमान में, कंप्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल अपरिहार्य हो गया है। लिहाजा कंप्यूटर पर लगातार काम करते रहने से आंखों में चुभन के साथ-साथ कमर, सिर, कंधों और गर्दन में दर्द होना बेहद आम बात है। कंप्यूटर पर काम करने वालों को कार्पेल टनल सिंड्रोम होना सामान्य है। हालांकि कुछ सावधानियां और तरीके अपनाकर हम अपने आपको कंप्यूटर के निगेटिव प्रभावों से बचा सकते हैं। काम के दौरान कम से कम 8-10 ग्लास पानी जरूर पीए। 30 से 40 मिनट के अंतराल पर ब्रेक लेते रहें, इससे पैरों में भी खून का बहाव ठीक रहता है। काम के बीच-बीच में अपने कंधों, सिर और हाथों को 15-10 सेकेंड पर आगे-पीछे व दाएं-बाएं घुमाते रहें, इससे आपके शरीर में रक्त का संचार ठीक रहेगा। लगातार बैठकर काम करने से पाचन क्रिया से संबंधित बीमारियां भी होने का खतरा रहता है इसलिए ऐसे लोगों को हल्का खाना खाना चाहिए।

अब तो कई प्राइवेट कंपनियां अधिक काम और तनाव की जद में अपने वाले कर्मचारियों की शारीरिक फिटनेस का ध्यान रख रही हैं। इस बाबत बड़े शहरों में कारपोरेट फिटनेस कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। कार्यस्थल पर हेल्थकेयर की सुविधा देने से कंपनियों को कई सकारात्मक लाभ मिले हैं।

हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप)
आज लोगों में हाइपरटेंशन एक बहुत ही आम समस्या है। हाइपरटेंशन की मुख्य रूप से शारीरिक और मानिसक कारणों से होता है। खून में कालेस्ट्रल की वृद्धि, मोटापा, आनुवांशिक, अत्याधिक मांसाहारी भोजन, अत्याधिक तैलीय भोजन, शराब, अधिक चिंता, अकारण परेशान, जरूरत से ज्यादा काम तथा परिवार में या कार्यस्थल में तनाव आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिससे हाइपरटेंशन की समस्या उत्पन्न होती है।

हम खानपान में बदलाव और कुछ आदतों को अपना कर हाइपरटेंशन की बला को टाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर धनिया, गोभी, नारियल, शहद, का सेवन फायदेमंद होता है। इसके अलावा, मोटापे परहेज, गुस्सा, परेशानी और निगेटिव एनर्जी से दूर रहना व योगा करना इस बीमारी में लाभदायी होता है।

डायबिटीज (मधुमेह)
डायबिटीज एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या बनती जा रही है। पहले यह वयस्कों को या फिर बुढ़ापे में ही हुआ करती थी लेकिन अब आधुनिक जीवनशैली और अनियंत्रित खानपान के कारण डायबिटीज पर नियंत्रण करना मुश्किल हो गया है। डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा शहरों में बसने वाले लोगों को है। यह बीमारी अपने साथ कई अन्य बीमारियों को भी पैदा कर देती है। इस बीमारी से लोगों का मोटापा बढ़ने लगता है और दिल का दौरा पड़ने का खतरा भी बढ़ जाता है। किडनी पर भी डायबिटीज का बुरा असर पड़ता है।
इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए मरीज को अपने खानपान और जीवनशैली को सख्ती से अनुशासित करना चाहिए।

सफेद दाग
डर्मेटोलॉजी में सफेद दाग को ल्यूकोडर्मा, विटिलिगो, श्वेतचर्म या फूलबहरी रोग कहते हैं। इसकी मूल वजह मेलोनोसाइट्स की त्वचा में कमी है। मेलोनोसाइट्स जब काम करना बंद कर देता है तो त्वचा में मेलानोसोम्स नहीं बनता और चमड़ी के उस हिस्से में मेलोनोसाइट्स अशक्त हो जाते हैं, जिसके कारण संपूर्ण सफेद दाग होने लगते हैं। आमतौर पर हाथ-पांव, पलकों, कान या उसके पीछे, वक्ष और रगड़ वाली जगह, घुटने और एड़ी के पास होती है।

हालांकि सफेद दाग का इलाज लगभग पूर्णतः संभव है। लेकिन इसके इलाज के लिए मरीज को योग्य त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए। सफेद दाग को सर्जरी, लेजर सर्जरी, त्वचा प्रत्यारोपण या टैटूइंग के जरिए इलाज किया जाता है। खासकर स्थाई सफेद दाग के मामले में कारगर मेलानोसाइट-केराटिनोसाई सेल सस्पेंशन नामक इलाज ने सफेद दाग के मरीजों में धब्बे से निजात दिलाने की दिशा में सकारात्मक आशा जगाई है।

कैंसर
फिलहाल कैंसर को लाइलाज माना गया है, लेकिन देश-दुनिया के वैज्ञानिक इस जानलेवा बीमारी से निजात दिलाने के लिए अपनी खोज प्रक्रिया को जारी रखे हुए हैं। देश भर में कैंसर से मरने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसमें कोई शक नहीं कि हमारी आरामतलब जीवनशैली और खानपान की गलत आदतें इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि हम सावधानी के तौर पर कुछ सामान्य उपाय अपना सकते हैं। चिकित्सकों का मानना है कि कैंसर के लिए मोटापा एक जोखिम है, इसलिए खुद को फिट रखने के लिए प्रतिदिन 30-45 मिनट का व्यायाम जरूर करना चाहिए। आहार विशेषज्ञों का मानना है कि उबला हुआ खाना तले-भुने खाने की तुलना में सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है। फाइबरयुक्त आहार पाचनतंत्र के लिए अच्छा होता है। विशेषज्ञों के अनुसार दिन भर में लगभग 35 ग्राम फाइबर लेना सेहत के लिए अच्छा होता है। हरी सब्जियों में फाइबर बहुत होता है। आहार में चीनी और नकम की मात्रा संतुलित रखना चाहिए। धूम्रपान और शराब से जितनी दूरी बनाया जाए वह अच्छा होगा। इलेक्ट्रानिक चीजों के बहुतायत इस्तेमाल से बचना चाहिए। मोटापे पर नियंत्रण रखना चाहिए। गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा नहीं लेना चाहिए।

हालांकि क्रांति के इस दौर में बदलते प्रतिमानों के बीच इस तरह की बीमारियां जहां आम हो गई हैं वहीं देश की कई जानी-मानी हेल्थकेयर कंपनियों में स्वास्थ्य संबंधी इन चुनौतियों से उपभोक्ताओं को निजात दिलाने के लिए होड़ मची हुई है। भारतीय हेल्थकेयर कंपनियां घरेलू स्वास्थ्य सेवा उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्य से जुड़ी ढ़ेरों सेवाएं मुहैया करा रही हैं। हेल्थकेयर सेक्टर के बड़े प्रदाता अपने उपभोक्ताओं को विश्व स्तरीय सुविधाएं मुहैया कराने की ओर उन्मुख है। इसके अलावा, कई लोग अपनी जीवन शैली में सुधार लाने के लिए फिटनेस ट्रैनर की भी मदद लेने लगे हैं।

(बिज़नेस स्टैंडर्ड-हिन्दी, मुंबई संस्करण के प्रायोजित परिशिष्ट में प्रकाशित)

भारत में तेजी से फलफूल रहा है हेल्थकेयर का कारोबार


              हमारे देश में ‘‘हेल्थकेयर सेक्टर’ सबसे तेजी से उभरता हुआ उद्योग है। इसका अंदाजा भारतीय उद्योग चैम्बर फिक्की द्वारा जारी की गई उस रिपोर्ट से सहज ही लगाया जा सकता है, जिसमें यह कहा गया है कि ‘‘सूचना प्रौद्योगिकी के बाद हेल्थकेयर सेक्टर भारत में सबसे तेजी से बूम करने वाला उद्योग है।’’ रिपोर्ट में यह भी संभावना जताई गई है कि ‘‘स्वास्थ्य सेवाओं पर 14 फीसदी सालाना की दर से किए जाने वाले खर्च के साथ 2020 तक भारतीय हेल्थकेयर सेक्टर का कारोबार 280 बिलियन डॉलर का हो जाएगा।’’ 2009 में जहां हेल्थकेयर सेक्टर में जीडीपी का 5.5 फीसदी हिस्सा खर्च किया गया, वहीं 2012 तक इसे बढ़ाकर 8 फीसदी किए जाने का अनुमान है। वर्तमान में, हेल्थकेयर सेक्टर का कारोबार करीब 40 बिलियन डॉलर का है और यह उम्मीद जताई जा रही है कि 2012 तक इस क्षेत्र का दायरा बढ़कर 78.6 बिलियन डॉलर का हो जाएगा।

भारतीय हेल्थकेयर सेक्टर में आई तेजी की मुख्य वजह लोगों की आय में हुई वृद्धि के साथ-साथ लंबे समय तक जीवन प्रत्याशा, सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में किए जाने वाले खर्चों में बढ़ोतरी और प्राइवेट सेक्टर द्वारा बड़े पैमाने पर किए जाने वाले निवेश को माना जा रहा है।

फिक्की की रिपोर्ट के अनुसार भारत हेल्थकेयर सेक्टर में जीडीपी का 5.2 फीसदी हिस्सा खर्च करता है, जिसमें से 4.3 फीसदी निजी प्रदाताओं द्वारा खर्च किया जाता है। इस रिपोर्ट में यह उम्मीद जताई जा रही है कि 2012 तक हेल्थकेयर सेक्टर में निजी प्रदाताओं द्वारा किए जाने वाले खर्च का दायरा बढ़कर 45 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। इसके अलावा, इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 2012 तक हॉस्पिटल सेक्टर, जोकि हेल्थकेयर सेक्टर के कुल कमाई का 70 फीसदी से अधिक की उगाही करता है, अकेले 54.7 बिलियन डॉलर के कारोबार तक पहुंच जाएगा। अगर हम रोजगार की बात करें तो, एक अनुमान के मुताबिक हेल्थकेयर सेक्टर 2012 तक 9 मिलियन की आबादी को रोजगार मुहैया कराएगा।

पिछले दो साल के दौरान हेल्थकेयर सेक्टर में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला है। एक ओर जहां देश की जानी-मानी कंपनियां हेल्थकेयर सेक्टर में विस्तार योजनाओं का एलान कर रही हैं वहीं इस क्षेत्र में पहले ही प्रवेश कर चुकी दिग्गज कंपनियों ने बड़े पैमाने पर निवेश की घोषणाओं को मूर्त रूप देने में जुटी हुई हैं। इस तरह के हो रहे विस्तार और निवेश की घोषणाओं से एक बात तो साफ है कि हेल्थकेयर सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का मजबूत आधारस्तंभ बनता जा रहा है।

मालूम हो कि रिलायंस इंडस्ट्री के प्रोमोटर मुकेश अंबानी भारत में सर हरकिसनदास नरोत्तमदास हॉस्पिटल (एचएनएच) नामक विश्व स्तरीय हॉस्पिटल की स्थापना कर रहे हैं। यह हॉस्पिटल रिलायंस फाउंडेशन के अंतर्गत बनाया जा रहा है और यह उम्मीद जताई जा रही है कि इसे अगले दो साल के अंदर शुरू कर दिया जाएगा। यह हॉस्पिटल पूरी तरह एकीकृत नवीन तकनीकों एवं उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाओं से लैस होगा। हालांकि मुकेश अंबानी के छोटे भाई, अनिल अंबानी इस सेक्टर में पहले ही प्रवेश कर चुके हैं। अनिल अंबानी द्वारा मुंबई में कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना किया गया है। 750 बिस्तरों वाला यह टर्टियरी केयर हॉस्पिटल देश के सबसे बड़े हॉस्पिटलों में से एक है।

वर्तमान में, तेजी से फलफूल रहे हेल्थकेयर सेक्टर पर अंबानी भाइयों के अलावा देश की कई जानी-मानी कंपनियां भी अपनी नजरें गराई हुई हैं, जिसमें मुख्य रूप से हिन्दुजा, सहारा ग्रुप, इमामी, अपोलो टायर्स और पनासिया ग्रुप शामिल हैं। हालांकि इन नामचीन कंपनियों के द्वारा इस सेक्टर में प्रवेश करने के पीछे कई पर्याप्त कारण गिनाए जा सकते हैं। फिक्की और अर्नेस्ट एंड यंग द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 2025 के अंत तक देश में स्वास्थ्य सेवा उपभोक्ताओं के लिए 1.75 मिलियन अतिरिक्त हॉस्पिटल बिस्तरों की आवश्यकता पड़ेगी और साथ ही यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें प्राइवेट सेक्टर का योगदान 15-20 फीसदी का होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को 2025 तक हेल्थकेयर सेक्टर में लगभग 86 बिलियन डॉलर निवेश करने की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, भारत में प्रति एक लाख आबादी पर केवल 860 हॉस्पिटल बिस्तर ही उपलब्ध है।

सुब्रतो रॉय की नेतृत्व वाली सहारा समूह भी इस सेक्टर में अपने कदम बढ़ा चुकी है। इस समूह के पास पहले से ही कई हॉस्पिटल मौजूद है। इस समूह ने एम्बी वैली सिटी में 1,500 बिस्तरों वाला एक मल्टी सुपर-स्पेशियलिटी टर्टियरी केयर हॉस्पिटल, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 200 बिस्तरों वाला एक मल्टी-स्पेशियलिटी टर्टियरी केयर हॉस्पिटल और साथ ही समूह के तमाम 217 सहारा सिटी होम्स टॉउनशिप में 30 बिस्तरों वाला मल्टी-स्पेशियलिटी सेकेंडरी केयर हॉस्पिटल की स्थापना करने की योजना बनाई है। सहारा समूह के 217 हॉस्पिटलों में से पहले चरण के 88 टॉउनशिपों में से नौ हॉस्पिटलों को जल्द ही अहमदाबाद, औरंगाबाद, कोयम्बटूर, इंदौर, ग्वालियर, जयपुर, लखनऊ, नागपुर और सोलापुर में शुरू किया जाएगा। इन सभी परियोजनाओं को अस्तित्व में लाने के लिए सहारा समूह को करीब 3000-4000 करोड़ रुपये निवेश की आवश्यकता पड़ेगी।

अपोलो टायर्स समूह ने भी अपने हेल्थकेयर उद्यम, अरतिमिस हेल्थ साइंस (एएचएस) को शुरू कर इस सेक्टर में कदम रख दी है। अरतिमिस हेल्थ साइंस 260 बिस्तरों वाला एक टर्टियरी केयर सुपर-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल होगा और जिसे 260 करोड़ रुपये की निवेश के साथ गुड़गांव में स्थापित किया जा रहा है। यह समूह अगले तीन साल में उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में चार से आठ मल्टी-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के निर्माण की योजना बना रही है। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में गुणवत्तापूर्ण हेल्थकेयर सुविधाओं को मुहैया कराने वाली कंपनी इमामी ने भी अपने विस्तार की योजना बनाई है।

इसमें कोई शक नहीं कि शिक्षा की दर में दिनों-दिन हो रही वृद्धि ने बेहतर हेल्थकेयर मांग की जागरूकता को कई गुणा बढ़ा दिया है। हेल्थ इंश्यूरेंस संबंधी मांगों में बढ़ोतरी आखिरकार हेल्थकेयर सेक्टर को ही मजबूत कर रही है।

वर्तमान में, एक लाख बिस्तरों में से केवल 10 फीसदी का प्रबंधन ही प्राइवेट सेक्टर द्वारा किया जाता है। ऐसे समय में जब लोगों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो रही है और इसके साथ ही जीवन शैली की बीमारियों में भी इजाफा देखने को मिल रहा है, वैसे में हेल्थकेयर सेक्टर में निजी कंपनियों की प्रवेश की आवश्यकता तेजी से बढ़ती जा रही है।

(बिज़नेस स्टैंडर्ड-हिन्दी, मुंबई संस्करण के प्रायोजित परिशिष्ट में प्रकाशित)