Saturday, August 10, 2013

अशुद्ध साधन बनाम शुद्ध साधन




....गांधीजी जिसे शुद्ध साधन समझते हैं..., वह भी शुद्ध है नहीं। जैसे गांधीजी कहते हैं कि अनशन है। उसे वह शुद्ध साधन कहते हैं। मैं नहीं कह सकता। क्योंकि दूसरे आदमी को मारने की धमकी देना अशुद्ध है, तो स्वयं को मर जाने की धमकी देना शुद्ध कैसे हो सकता है? मैं आपकी छाती पर छुरा रख दूं और कहूं कि मेरी बात नहीं मानेंगे तो मार डालूंगा, यह अशुद्ध है। और मैं अपनी छाती पर छुरा रख लूं और कहूं कि मेरी बात नहीं मानेंगे तो मैं मर जाऊंगा, यह शुद्ध हो जाएगा?....

अंबेडकर के खिलाफ गांधीजी ने अनशन किया। अंबेडकर झुके बाद में। इसलिए नहीं कि गांधीजी की बात सही थी, बल्कि इसलिए कि गांधीजी को मारना उतनी सी बात के लिए उचित न था। इतनी हिंसा अंबेडकर लेने को राजी न हुए। बाद में अंबेडकर ने कहा कि गांधीजी अगर समझते हों कि मेरा ह्रदय-परिवर्तन हो गया, तो गलत समझते हैं। मेरी बात तो ठीक ही है और गांधीजी की बात गलत है। और अब भी मैं अपनी बात पर टिका हूं। लेकिन इतनी सी जिद्द के पीछे गांधीजी को मारने की हिंसा मैं अपने ऊपर नहीं लेना चाहूंगा। अब सोचना जरूरी है कि शुद्ध साधन अंबेडकर का हुआ कि गांधी जी का हुआ? इसमें अहिंसक कौन है? मैं मानता हूं, अंबेडकर ने ज्यादा अहिंसा दिखलाई। गांधीजी ने पूरी हिंसा की। वह आखिरी दम तक लगे रहे कि जब तक अंबेडकर राजी नहीं होता, तब तक तो मैं मरने की तैयारी रखूंगा।.....

ओशो
पुस्तक : कृष्ण-स्मृति

(प्रवचन नं. 10 से संकलित)

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